डर लगने लगा है अपनी परछाइयों से !
टूटता जा रहा हूँ अपनों की बेवफाइयों!!
जी चाहता है कि उनसे शिकवे करूं !
समझ नहीं आता पेश कैसे करूं !!
बेवफाई का कैसा ये अंदाज़ है !
समझ नहीं आता इसमें क्या राज है!!
कल तक तो साथ जाम छलकते थे !
साथ पी के सडकों में हम बहेकते थे !!
आज पैमाना लिए करते इन्तजार हैं !
वो दूसरी महफिलों में मसरूफ करते हमे बेजार हैं !!
सोचते हैं बिना उनके तबियत ढल जायेगी !
अरे हमको भी नयी महफ़िल मिल जायेगी !!
Friday, January 2, 2009
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Tusi te Great ho!
ReplyDeleteGood one, A little different from others but really good one.
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