Saturday, January 3, 2009

भाव

हुआ प्रभात अब गयी रात, पक्षी चाह्चाहाये !
खोल नयन अब बीती रैन, भंवरे गुनगुनाये !
सो न जा कहीं खो न जा, विवेक तुझे जगाये !
हुई प्रीत ये कैसी रीत, भावों ने दीप जलाये !
प्रेम धार वह सुंदर नार, ह्रदय में बहाए !
प्रेम राग ये अनुराग, आंदोलित करता जाए !
ये अगार ये पवित्र प्यार, एकाकीपन मिटाए !
ये वायु मंद फैली सुगंध, प्रेम रस में डुबाये !
बह न जाऊं कहीं रह न जाऊं, सीमा बाँध बनाये...

1 comment:

  1. Actually, the first line directed me differently, but fits in. Good one.

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