जीवन की अँधेरी शाम और कष्टों की भरमार !
तू तो भोग रही है कैसे कष्टों का अम्बार !!
देख तुझे मन में मेरे पीड़ा बहुत समाती है !
क्या सब के जीवन में ऐसी ही शाम आती है !!
परम पिता से करुँ याचना हो तेरे कष्टों का निवारण !
इस जीवन से मुक्ति पा कर, तू कर नव तन धारण !!
"यह कविता एक गाय के लिए मेरी भावनाओं को व्यक्त करती है जो एक सड़क के किनारे कई दिनों से मरणासन्न हालत में पड़ी कष्ट पा रही थी । इस कविता में की गयी मेरी प्रार्थना को परम पिता ने तुंरत स्वीकार कर उस गाय को उसी रात मुक्ति प्रदान की । "
Friday, January 23, 2009
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