ऐसा अक्सर क्यों होता है, लगता कोई अपना सा !
बीते जन्म की याद पुरानी, प्रात प्रहर के स्वप्नों सा !!
कोई डोर तो छिपी होती है, जो खींचे अनजाने को!
बिन चाहत बिन कारण के कहता ये मन मिल जाने को !!
आखिर कुछ तो होता होगा किस्सा पिछले जन्मों का !
तुझ में भी मैंने खोजा है रिश्ता पिछले कई जन्मो का !!
किस जन्म में डोर बंधी थी कब तक मुझको तुझ तक खींचेगी !
प्रीत के इन रिश्तो को प्रेम स्नेह से सींचेगी !!
जीवन के स्पंदन से तेरे ही सुख गीत मांगूं !
क्या हो तुम मेरे क्यों हो कुछ न समझूं कुछ न जानूं !!
Friday, January 2, 2009
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