Friday, January 23, 2009

आर्तनाद !

आर्तनाद! करता है अंतस, तुझ बिन छलके बरबस ।
झुलस गया मेरा सर्वस्व, वियोग के उस दावानल में ।
वर्णित न कर पाया प्रीतम, व्यथा कथा अपने अंतस की ।

कितना प्रेम भरा निवेदन नयना करते थे नैनो से ।
क्या नैनो की भाषा समझ नहीं आती थी तुझको ।
या मेरी प्रेम पूर्ण प्रेमांजलि नहीं कभी भाती थी तुझको ।

मै अब तक नहीं समझ पाया क्या कारण था, यूँ छिप जाने का ।
देख मुझे निकट तेरा ये प्रेम पूर्ण शर्माने का ।

अपने अधरों की रसना से, कर दो दूर ये प्यास पुरानी ।
अपने नैनो की छाया में सिमटा लो ये अमर कहानी ।

अपनी मादक स्वासों से कर दो स्पंदित कविता वीणा ।
स्नेह की मादकता भर दो, हर कर वियोग की पीड़ा ।

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