Saturday, January 3, 2009

उलझन

सूनी सूनी थी एक रात, मन पूछे बस एक ही बात
कब आयेगा ऐ युग वो क्षण, जब करे सफलता ख़ुद को अर्पण
होगा कब खुशियों का वर्षण, करे उद्वेलित दुनिया के आकर्षण
उजड़ा चमन खिलेगा कब, भंवरा कलियाँ चूमेगा कब
प्रेम राग गूंजेगा कब, मेरा मीत मिलेगा कब
प्रेम प्रवाह की सरिता में, मैं तो प्रति क्षण डूबा जाऊं
लक्ष्य साधन की लिए प्रेरणा, बस आगे बढ़ता जाऊं

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