Friday, January 2, 2009

गुत्थी


रूप सुनहेरा चाँद सा चेहरा, लतें काली घनघोर
तुझे देखने को प्यासी हैं ऑंखें, कब से सुन मेरी चितचोर
जीवन के देखे रंग अनेक, एक यही है भाया
शिशिर की सुनहरी धुप सी, सुंदर तेरी काया

देखा आँखों में तेरे एक चुंबकीय आकर्षण,
मानो करे शाश्वत प्रेम का वर्षण
क्या ये वर्षण मुझ पर ही है या भ्रम है मेरा,
मुझ पर नहीं ध्यान है तेरा

गुत्थी सुलझ नहीं पाती है,
जितना सुलझाता हूँ उतनी और उलझ जाती है
तू मेरी जीवन की कविता है जिसको नित मैं गाता हूँ
दूर चाहे जितना रहे ले तू पास सदा पता हूँ

मुझ वैरागी का वैराग है तू,
मेरी जीवन का राग है तू
मेरे स्वप्नों का श्रृंगार है तू,
मेरे जीवन का आधार है तू

मेरा सब कुछ तू ही तू बस तू सिर्फ़ तू ...



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